महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भाजपा को लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में खराब प्रदर्शन के कारण स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। अब भाजपा के राज्य स्तर के नेता इस स्थिति के लिए जिम्मेदारियों का सामना कर रहे हैं, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सुधार की उम्मीद कर रहे हैं। 2019 में शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने 41 में से 23 सीटें जीतीं, लेकिन 2024 में भाजपा को सिर्फ 9 सीटें मिलीं।
केंद्र में भाजपा नेतृत्व ने क्षेत्रीय नेताओं के गलत फैसलों को सहन किया, लेकिन अब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया कि शिवसेना का टूटना उद्धव ठाकरे और शरद पवार के पारिवारिक संबंधों का परिणाम था।
क्या भाजपा के स्थानीय नेताओं ने लोकसभा चुनाव की विफलता से कुछ सीखा? ऐसा लगता नहीं है। दोनों पार्टियों के बीच चल रही आपसी तनातनी और नेताओं का अहंकार महाविकास अघाड़ी को प्रचार में मुद्दा प्रदान कर सकता है।
मोदी को विधानसभा चुनाव में फिर से प्रचार का भार उठाना होगा। मोदी ने पिछले चुनाव में महाराष्ट्र में 18 सभाएं की थीं, लेकिन महागठबंधन के केवल 17 उम्मीदवार ही जीत पाए। यह दर्शाता है कि ‘मोदी मैजिक’ कम हो रहा है। भाजपा को अब स्थानीय नेतृत्व की जरूरत है, जो पिछले पांच वर्षों में विश्वास खो चुका है।
भाजपा के सामने कई चुनौतियाँ हैं, जैसे महागठबंधन के अंतर्गत वर्चस्व की लड़ाई, बातूनी नेताओं की समस्या, और अल्पसंख्यक समुदाय को जोड़ने की चुनौती। भाजपा को अब स्थानीय नेतृत्व की गलतियों को स्वीकार कर सुधार की दिशा में बढ़ना होगा, क्योंकि सारा बोझ मोदी पर नहीं डाला जा सकता।