विदर्भ में चुनावी सफलता किसी भी पार्टी के लिए राज्य के राजनीतिक समीकरण तय करती है। 2009 तक, कांग्रेस ने विदर्भ में मजबूत स्थिति बनाए रखी, लेकिन पिछले दो चुनावों में बीजेपी ने जीत हासिल की है। इस बार महागठबंधन के लिए स्थिति अनुकूल नहीं दिखाई देती।
विदर्भ में कुल 62 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 32 पूर्व और 30 पश्चिम विदर्भ में हैं। पिछली बार, बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने 33 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस-एनसीपी ने 21 और अन्य ने 8 सीटें प्राप्त कीं। हाल के लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी ने 10 में से 7 सीटें जीतीं, जिससे विधानसभा चुनाव के लिए संभावनाएँ बदल गई हैं।
मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है, जिसमें नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस जैसे नेता प्रमुख हैं। अगर बीजेपी को अपनी सीटों की संख्या बनाए रखनी है, तो उसे 30 से अधिक सीटें जीतनी होंगी। इसी वजह से पार्टी नेता लगातार विदर्भ का दौरा कर रहे हैं। पहले कांग्रेस यहां मजबूत थी, और अब उसे फिर से मौका मिल रहा है।
पूर्वी विदर्भ के नागपुर डिवीजन में कई जिले शामिल हैं। 2019 में, बीजेपी ने 14, कांग्रेस ने 10 और एनसीपी ने 4 सीटें जीतीं। बीजेपी की स्थिति कमजोर हुई है, खासकर भंडारा और चंद्रपुर में, जिससे कांग्रेस और एनसीपी की ताकत बढ़ी है।
केंद्र और राज्य की डबल इंजन सरकार ने विदर्भ में कई विकास परियोजनाएँ लाई हैं, लेकिन बुनियादी ढांचे में समन्वय की कमी की आलोचना हो रही है। जातीय समीकरण भी महत्वपूर्ण हैं, और यदि बीजेपी को सफल होना है, तो उसे इन्हें ध्यान में रखना होगा।